मार्तंड सूर्य मंदिर की पृष्ठभूमि
मार्तंड सूर्य मंदिर, भारत के इतिहास और संस्कृति के महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है। यह मंदिर जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित है और भारतीय स्थापत्य कला की उच्चतम श्रेणी में गिना जाता है।
मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण लगभग 8वीं शताब्दी में किया गया था, और इसका निर्माण राजा ललितादित्य महाराज ने किया था। यह मंदिर वैदिक संस्कृति में सूर्य भगवान को समर्पित है और सूर्य भगवान को समर्पित है, जो जीवन का प्रकाश और ऊर्जा का स्रोत होते हैं।
मार्तंड सूर्य मंदिर की आधुनिक रचना के साथ-साथ, इसकी प्राचीनता और उसकी महत्ता भी अद्वितीय है। इस मंदिर की भव्यता, अत्यंत ऊँचाई पर स्थित होने के कारण, इसे “कश्मीर की कोहिनूर” भी कहा जाता है।
यह मंदिर भव्य स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसकी संरचना बौद्ध, जैन, और हिंदू स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषताओं को समाहित करती है। मंदिर की मुख्य भव्यद्वार से प्रवेश करते समय यह स्थापत्य कला का उज्जवल और ग्राम्य विभाव महसूस होता है।
मार्तंड सूर्य मंदिर की विशेषता इसकी स्थापत्य और स्थानिक सांस्कृतिक विरासत में है। इस मंदिर का निर्माण पत्थर, रेता, और शिलाओं से किया गया है और इसकी स्थापत्य विशेषता उसके सुंदर संरचना और वास्तुशिल्प में दिखाई देती है।
मार्तंड सूर्य मंदिर का अत्यंत महत्त्वपूर्ण इतिहास है। यह मंदिर हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों के अद्वितीय संगम का प्रतीक है। इसका निर्माण एक महान और समृद्ध सांस्कृतिक सम्राटि के दौर में हुआ था, जो कश्मीर में संस्कृति और कला के साथ-साथ शांति और सौहार्द के प्रतीक थे।
आज, मार्तंड सूर्य मंदिर अपने रोमांचक इतिहास, आदर्श स्थापत्य कला, और धार्मिक महत्व के कारण भारतीय और विदेशी पर्यटकों की धार्मिकता का केंद्र बना हुआ है। यहाँ प्रतिदिन लाखों लोग आते है।
मार्तंड सूर्य मंदिर, जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित है और भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठतम स्थानों में से एक है। यह अद्वितीय और भव्य मंदिर, भारतीय स्थापत्य कला का एक प्रमुख उदाहरण है और इसे “कश्मीर की कोहिनूर” भी कहा जाता है। मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण लगभग 8वीं शताब्दी में हुआ था, और इसका निर्माण राजा ललितादित्य महाराज ने किया था।
यह मंदिर हिंदू धर्म में सूर्य भगवान को समर्पित है, जो प्राकृतिक प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक है। मार्तंड सूर्य मंदिर का नाम भी सूर्य देवता के एक अन्य नाम ‘मार्तंड’ से लिया गया है। यह मंदिर वैदिक संस्कृति में सूर्य के पूजन के महत्व को दर्शाता है और धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व के साथ भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
मार्तंड सूर्य मंदिर की स्थापत्य कला और शैली अद्वितीय है। यह मंदिर अपने भव्य और वैभवपूर्ण स्थानिक संरचना के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का प्रमुख भव्यद्वार और उसकी ऊँचाई इसकी विशेषता हैं जो इसे अन्य संरचनाओं से अलग बनाती हैं।
इस मंदिर का निर्माण पत्थर, रेता, और शिलाओं से किया गया है और इसकी संरचना की शैली में भारतीय स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषताओं को देखा जा सकता है। मार्तंड सूर्य मंदिर की संरचना ने वैदिक, बौद्ध, और जैन स्थापत्य कला के तत्त्वों को समाहित किया है।
मार्तंड सूर्य मंदिर का इतिहास भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह मंदिर हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों के अद्वितीय संगम का प्रतीक है। इसका निर्माण एक महान और समृद्ध सांस्कृतिक सम्राटि के दौर में हुआ था, जो कश्मीर में संस्कृति और कला के साथ-साथ शांति और सौहार्द के प्रतीक थे।
आज, मार्तंड सूर्य मंदिर अपने रोमांचक इतिहास, आदर्श स्थापत्य कला, और धार्मिक महत्व के कारण भारतीय और विदेशी पर्यटकों की धार्मिकता का केंद्र बना हुआ है।
मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण
मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी ईस्वी में कर्कोटा राजवंश के तहत कश्मीर के तीसरे महाराज ललितादित्य मुक्तापिदा द्वारा किया गया था। यह मंदिर कश्मीर के शिखरों में स्थित है और इसका निर्माण इस समय के राजा के समर्थन और उनके नेतृत्व में हुआ था।
मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण कर्कोटा राजवंश के समय में हुआ, जो कश्मीर में साहित्य, कला, और संस्कृति के स्वर्णकाल के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण ललितादित्य मुक्तापिदा के शासनकाल में हुआ, जो कश्मीर के लिए एक समृद्ध और समृद्ध काल था।
हालांकि, कुछ इतिहासकारों के अनुसार, मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण 725-756 ईस्वी के बीच हुआ था। इसके बावजूद, मंदिर की नींव का कुछ हिस्सा 370-500 ईस्वी पूर्व का है। इससे स्पष्ट होता है कि मंदिर का निर्माण कई चरणों में हुआ और इसके निर्माण में कई शासकों और सम्राटों का योगदान रहा हो सकता है।
मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण एक महत्वपूर्ण कार्य था, जो कश्मीर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में दर्ज हुआ। इसका निर्माण कई वर्षों तक चला और इसका निर्माण सम्राटों के समर्थन और भव्यता के रूप में देखा जाता है।
मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण कर्कोटा राजवंश के समय में हुआ, जो कश्मीर के इतिहास में एक समृद्ध और समृद्ध काल के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण कई समृद्ध और प्रभावशाली साम्राज्यकालों के दौरान हुआ और यह उनकी शक्ति, साहस, और धर्मानुष्ठान का प्रतीक है।
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मार्तंड सूर्य मंदिर का इतिहास
मार्तंड मंदिर, एक पठार के ऊपर बनाया गया है, जो कश्मीर घाटी के सर्वाधिक प्रमुख और आकर्षक स्थलों में से एक है। इसकी विशेषता और उत्कृष्टता को ध्यान में रखते हुए, यह मंदिर कश्मीरी वास्तुकला का एक प्रमुख उदाहरण है, जो गंधारन, गुप्त और चीनी वास्तुकला के तत्वों को समाहित करता है।
मार्तंड मंदिर में एक उपनिवेशित प्रांगण है, जिसमें मुख्य मंदिर का स्थान है, जो इसके केंद्र में स्थित है। इस प्रांगण को चारों ओर 84 छोटे मंदिरों से घेरा हुआ है, जो एक उन्नत और विविध संरचना का नमूना प्रस्तुत करते हैं। इन मंदिरों का संगठन मंदिर को अधिक आकर्षक और महत्वपूर्ण बनाता है।
मंदिर का प्रावेश द्वार पूरी तरह से धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व को दर्शाता है। इसका स्थान चतुर्भुज के पश्चिमी भाग में है, और यह मंदिर के विशाल आकार को और अधिक प्रतिबिंबित करता है। प्रवेश द्वार की संरचना और सजावट इसे एक शानदार और प्रभावशाली लकड़ी का काम बनाती है।
मार्तंड मंदिर के साथ ही उसके विभिन्न कक्षों के योजना और संरचना का संयोजन मंदिर को एक अद्वितीय स्थल बनाता है। इसकी शैली और रूपरेखा भव्य और आकर्षक है, और यह एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समृद्धि का प्रतीक है। इस मंदिर का उपलब्ध रहना और इसकी संरचना के अनुसार, यह स्थल पर्यटकों के लिए एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक स्थल है।
मार्तंड मंदिर एक पठार के ऊपर बनाया गया था जहाँ से पूरी कश्मीर घाटी को देखा जा सकता है। यह एक अद्वितीय स्थल है जो प्राचीन समय से ही लोगों के ध्यान और आकर्षण का केंद्र रहा है। इसकी विशेषता और महत्वपूर्णता को ध्यान में रखते हुए, मार्तंड मंदिर को कश्मीरी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना माना जाता है।
मार्तंड मंदिर के विभिन्न अंगों का अद्वितीय विन्यास और योजना इसे एक अद्वितीय स्थल बनाता है। इसमें एक उपनिवेशित प्रांगण है, जिसमें मुख्य मंदिर का स्थान है, जो यहाँ के केंद्र में स्थित है। इसके चारों ओर 84 छोटे मंदिर हैं, जो समूचे प्रांगण को घेरे हुए हैं। इन छोटे मंदिरों के विभिन्न आकार और रूपों का संयोजन मंदिर को एक अद्वितीय रूप और चारित्र देता है।
मार्तंड मंदिर को एक पेरिस्टाइल का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है। इसके विभिन्न कक्षों के कारण यह जटिल होता है और इसकी समग्र परिधि के साथ संरेखित है। मंदिर का प्रवेश द्वार चतुर्भुज के पश्चिमी भाग में स्थित है और इसके साथ ही चौड़ाई में भव्यता पैदा करता है। इस प्रवेश द्वार का निर्माण धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व के साथ हुआ है, जो मंदिर की भव्यता को और अधिक उज्ज्वल और प्रभावशाली बनाता है।
मार्तंड मंदिर का वास्तुकला उन्नतता का प्रतीक है, जो गंधारन, गुप्त और चीनी वास्तुकला के रूपों को मिश्रित करता है। इसकी विशेषता और ऐतिहासिक महत्व के कारण, मार्तंड मंदिर एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में माना जाता है, जो लोगों को अपनी अद्वितीय स्थापत्य कला और विरासत का अनुभव करने का अवसर प्रदान करता है। इसकी आकृति, योजना, और सांस्कृतिक महत्त्व ने इसे एक अद्वितीय स्थल बनाया है
मार्तंड सूर्य मंदिर का विनाश
मार्तंड सूर्य मंदिर, भारतीय स्थापत्य कला का एक अद्वितीय उदाहरण था, जो की जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित था। यह मंदिर लगभग 8वीं शताब्दी में बनाया गया था और सूर्य भगवान को समर्पित था। इसकी शानदार स्थापत्य कला, भव्य रूपरेखा और ऐतिहासिक महत्ता ने यहाँ के पर्यटकों को आकर्षित किया। लेकिन दुःख की बात है कि यह महान मंदिर अब विनाश का शिकार हो चुका है।
मार्तंड सूर्य मंदिर का विनाश एक अफ़सोसनाक घटना है। इसका पीछा भारी राजनीतिक और सामाजिक विवाद है। इस मंदिर का विनाश 15वीं सदी में हुआ, जब मुघल सम्राट सुल्तान हैबदिन ने इसे ध्वस्त किया।
विवाद का कारण था महान राजा महाराजा मनसिंह की पुत्री की विवाह। मुघल साम्राज्य ने कश्मीर पर अपना कब्जा कर रखा था और सुल्तान हैबदिन को अपनी सत्ता की बढ़ोतरी के लिए विवाह का अवसर चाहिए था। मनसिंह के विरोध के बावजूद, हैबदिन ने माना नहीं और मार्तंड सूर्य मंदिर को नष्ट कर दिया।
मार्तंड सूर्य मंदिर का विनाश कई रूपों में आया। पहले तो, इसे मुघल सेना ने आग लगा कर नष्ट किया। फिर, स्थानीय लोगों ने इसके प्राचीन पत्थरों का उपयोग अपने घरों और अन्य संरचनाओं में किया। इसके बाद, समय के साथ, मंदिर की स्थिति और संरचना का बिगड़ना शुरू हो गया। आज, केवल कुछ अवशेष ही बचे हैं, जो कि इस महान मंदिर की पूर्व सामर्थ्य और ग्राम्यता का दीर्घकालिक गेटवे हैं।
मार्तंड सूर्य मंदिर का विनाश भारतीय संस्कृति और धार्मिक धाराओं के प्रति एक नुकसान है। इसे समर्पित की गई मेहनत, श्रद्धा, और समर्पण के साथ बनाया गया था, और इसका विनाश इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर के एक महत्वपूर्ण हिस्से को खोने का अर्थ है। यह घटना हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर की महत्वपूर्णता को समझने और संरक्षण करने की आवश्यकता को समझाती है। इसके विनाश ने हमें यह शिक्षा दी है
15 वीं शताब्दी की शुरुआत में सिकंदर बुतशिखान के शासन के दौरान मार्तंड सूर्य मंदिर को नष्ट कर दिया गया था, जो हिंदुओं के इस्लाम में जबरन धर्मांतरण के लिए जिम्मेदार था। उसे ‘सिकंदर द इकोनोक्लास्ट’ या सिकंदर बुतशिकन भी कहा जाता था। वह कश्मीर के शाह मिरी राजवंश के छठे सुल्तान थे।
उसने 1389 से 1413 के बीच शासन किया। सिकंदर बुतशिकन धार्मिक कट्टर था। सूफी संत, मीर मोहम्मद हमदानी ने उसे न्त्कालीन बहुसंख्यक आबादी पर अपराध करने के लिए प्रभावित किया, हिंदुओं ने उसे बलपुर्वक इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए एक रणनीतिक कदम उठाया। परिणामस्वरूप, कई हिंदुओं ने बड़ी संख्या में इस्लाम धर्म अपना लिया।
उसके वंशज अब कश्मीर में रहते हैं और खुद को मुसलमान के रूप में पहचानते हैं। जिन्होंने इस्लाम कबूल करने से इनकार किया या तो कश्मीर से भाग गए या मारे गए। यह 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के सामूहिक वध से बहुत अलग नहीं था। यह एक भव्य मंदिर था और ऐसा कहा जाता है कि मार्तंड सूर्य मंदिर को नुकसान पहुंचाने के लिए उन्हें एक समर्पित टीम और एक वर्ष का समय लगा। कई इतिहासकार इस सिद्धांत को मानते हैं।
डॉ अंकुर प्रकाश गुप्ता (मानव)
मानद उपाधि पब्लिक यूनिवर्सिटी आफ केलिफोर्निया
खतौली,मुजफ्फरनगर,उत्तर प्रदेश
मार्तंड सूर्य मंदिर चित्रों में
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